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एक वर्णन जैसा✍✍✍

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Jul 5, 2017
  • 1 min read

श्रृंगार न देखा दुल्हन जैसा दर्द न देखा विरहन जैसा तेरा चेहरा जब छुए निगाहें दर्प दिखे है चंदन जैसा स्वर्ण मनोहर सी है छाया वाणी में माधुर्य समाया नील झील से नयन तुम्हारे दिल है तुम्हारा दर्पण जैसा दिन से दोपहरी साँझ से रातें तुझ तक आकर थम से जाते फिर भी जिसने जैसा चाहा खुद को किया तूने अर्पण वैसा बहुतेरे लोगों ने बताया कितना खोया कितना पाया सबके क़िस्से सुने-पढ़े पर नहीं वो तेरे समर्पण जैसा ◆◆◆ मुक्त ईहा 


 
 
 

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