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मैं आप ही अपनी मनस्विनी !🙏

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Sep 12, 2017
  • 1 min read

मर्दित तन है निढ़ाल हो जाने दो गर्वित मन है प्रत्यंचा चढ़ाने दो अर्जित धन है लक्ष्य अचूक लगाने दो पर्वित जन हैं शब्दभेदी बाण चलाने दो मैं नहीं अभी संपूर्ण पर नहीं रही मैं बंदिनी परतों ऊपर उठ आई हूं मैं आप ही अपनी मनस्विनी । आकीर्ण स्वप्न हुए जो सिमट जायेंगे संकीर्ण विचार हुए तो बदले जायेंगे जीर्ण काया को फ़िर सुदृढ़ बनायेंगे प्रवीण मन की खंडित नौका पार लगायेंगे जागृत हो बन गई स्वयं तेजस्विनी मैं आप ही अपनी मनस्विनी । आरेखित भूमि पर वर्चस्व प्रदत्त किया उद्वेगीत स्वर लहरी पर नव पौध रोपित किया पल्लवित सुमन होंगें तो सुगंध प्रवाहित होगी प्रखरित उपवन होगा फिर भूमि आह्लादित होगी रहूंगी तब जीवन तरु की सिंचनी मैं आप ही अपनी मनस्विनी । ◆◆◆◆◆ मर्दित - रौंदा हुआ, कुचला हुआ •••••✍✍✍ ● Śमृति @ मुक्त ईहा••••••• © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ छायाचित्र आभार🤗 - !nterne+ 


 
 
 

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