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खुदगर्ज़ी ज़बान की....

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Jul 7, 2017
  • 1 min read

बस ज़रा ज़ायक़े में कड़वा है वरना सच का कोई जवाब नही ।।।।। क़सूर झूठ की चाशनी का है यारों जिसकी असीर है यह ज़बान मेरी ।।।।  

समझाते मुझे वो ज़िंदगी का फ़लसफ़ा

कहते दुनिया का हमको ज्ञान नहीं ।।।।।

कैसे समझाएं खुद पे ही दांव खेला है

जीत का नफ़ा बख़्शे ख़ुदा नुक़सान नहीं ।।।

रिफ़ाक़तों के सिलसिले भी नाम के हैं

सुकून का उनमें भी ऐहतमाम नहीं ।।।

मनमर्ज़ी की बादशाहत कायम है

यार हो तुम मेरे हुक्मरान नहीं ।।।।

सौ ग्राम ज़िंदगी से दूसरे को क्या दें इमदाद इतनी भी है आसान नहीं ।।।। बरसों का तज़ुर्बा कैसे पल भर में बताएं ये सिर्फ़ क़िस्सों वाली दास्तान नहीं ।।।।। 

●●●●●●● मुक्त ईहा

1. असीर - कैदी

2. रिफ़ाकत - साथ

3. ऐहतमाम - व्यवस्था

4. इमदाद - सहायता


 
 
 

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