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बचपन वाली दोपहरी🤗🤗

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Jul 9, 2017
  • 1 min read

फुर्सत की एक दोपहरी अपने लिये चुरा के रखी है सूरज की किरणों ने फिर मुझपे नई इबारत लिखी है ... बीतते वक़्त के साथ कितने दिन-दोपहरी आये और गए ?? याद नहीं कि कब आखिरी बार सूर्य किरणों से आँख-मिचौली खेलते हुए बरबस ही मुस्काई थी??? अब तो सवेरे की स्वर्णिम आभा और साँझ के धुंधलके की सिर्फ स्मृतियां शेष हैं।। कब उम्र की दहलीज़ लांघती मैं चार दीवारी में जिम्मेदारियों की गिरफ्त में आयी और कब खुद ही बचपन और अल्हड़पन के सारे कपाट बंद कर कृतिम खुशियां ढूंढने लगी, मुझे भान ही नहीं हुआ।।। किन्तु आज जब यूं ही अनजाने में उस रश्मि ने मेरे नेत्रों पर दस्तक दी सभी कपाट अनायास ही खुल गए। और बस ज़िन्दगी से चार पल चुराकर उसी बचपने में ग़ुम हो गई मैं बरसों बाद।।।। तो बस आज फिर एक बार उन्हीं अलसाई दोपहरी में सिर्फ मैं और वो आँख-मिचौली वाली सूर्य किरण है, और होठों पर वही बरबस आती मुस्कान....😊😊😊 


 
 
 

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