अहम् बनाम वहम!!!!
- Smriti Tiwari
- Jul 10, 2017
- 1 min read
सिसकियां भरती शफ़क़त हर पल ज़ार-ज़ार हो रही कभी तेरे वहम से कभी मेरे अहम् से ।।। झिड़कियां भी धीरे-धीरे तोहमतों में शुमार हो रहीं कभी तेरे वहम से कभी मेरे अहम् से ।।। पैने खंजर सी तेरी ज़फ़ाएं दिल के आर–पार हो रहीं कभी तेरे वहम से कभी मेरे अहम् से ।।। मन की ज़मीन बंज़र है और आंखों से बरसात हो रही कभी तेरे वहम से कभी मेरे अहम् से ।।। ●●●●●●●●● मुक्त ईहा 1. शफ़क़त - मुहब्बत 2. जफ़ा - ज़ुल्म

Commentaires