क्या खोया क्या पाया🏙🏞
- Smriti Tiwari
- Jul 13, 2017
- 1 min read
तारों के झुरमुट कहीं खो हैं गए चाँद भी कहीं गुम है इन रातों में ..... नकली चकाचौंध बस बिकती है शहर-ए-मीनार वाले बाज़ारों में ..... शाम का वो इत्मीनान दिखता नहीं जो मिलता था चौक-चौबारों में ...... रात की रंगीनियां बिखरती हैं सुबह को मिलने वालेे अख़बारों में ..... वो धमा-चौकड़ी ग़ुम हुई कहीं बचपन में होती थी जो गलियारों में .... ख्वाबों की चिठ्ठियां भी साथ गईं आकाश में उड़ चुके गुब्बारों में ..... मेघों की बनावटें दिखती नहीं बस शोर सा है आसमानों में ..... मिट्टी की सौंधी खुशबू ग़ुम है इन कांक्रीट वाले मैदानों में .... हैं भीड़ में भी एक तन्हाई सी अपना सा चेहरा नहीं अनजानों में .... दरख़्त कैसे फूलें-फलें भला कल्पित हरियाली के बागानों में ..... तारों के झुरमुट कहीं खो हैं गए चाँद भी कहीं गुम है इन रातों में ..... नकली चकाचौंध बस बिकती है शहर-ए-मीनार वाले बाज़ारों में ..... ◆◆◆◆ मुक्त ईहा

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