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रिश्ते तुमने भुला दिए.......

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Jul 16, 2017
  • 1 min read

खट्टी - मीठी यादें चुनकर उन्हें प्रीत की डोरी में बुनकर तस्बीह पिरोयी थी मैंने जज़्बात तेरे सारे सुनकर। अहमों की खींचातानी ने मनके वो सारे गिरा दिए रिश्ते तुमने भुला दिए....... है पहले भी तकरार हुई फिर थोड़ी मान-मनुहार हुई तुम रूठे मैंने मना लिया कभी अश्कों की बरसात हुई। मेरी आत्मा आहत करने को वाणी के खंजर चला दिए रिश्ते तुमने भुला दिए....... सुख-दुःख की साझी बनने को हर अग्नि फेरा लगाया था मर्यादा की दहलीज़ों में घिरी हर घुटन को हंस के छिपाया था। वचनों की गरिमा रखने को मैंने सारे बंधन निभा लिए रिश्ते तुमने भुला दिए ..... कब तक भ्रम को स्वीकार करुं क्यूं नहीं भला प्रतिकार करुं अपने अस्तित्व का इस जग में आखिर कितना तिरस्कार करुं। पीछे छोड़ के रस्मों-नातों को मैंने खुद के पग हैं बढ़ा दिए क्योंकि~~ रिश्ते तुमने भुला दिए......

◆◆◆◆  मुक्त ईहा

1. तस्बीह - माला 


 
 
 

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