आत्म युद्ध...
- Smriti Tiwari
- Jul 22, 2017
- 1 min read
इक युद्ध छिड़ा मैदानों में इक युद्ध छिड़ा मेरे अंदर भी.... अपने साथ लिए मैं फिरती हूँ गहरी सोच का एक समंदर भी.... इक युद्ध छिड़ा मैदानों में इक युद्ध छिड़ा मेरे अंदर भी.... नासूर बने जो घाव मिले उनपर छिड़का संयम का मरहम भी.... इक युद्ध छिड़ा मैदानों में इक युद्ध छिड़ा मेरे अंदर भी.... बाग़ी से विचार उफनते हैं रोक न पाता मन का पिंज़र भी.... इक युद्ध छिड़ा मैदानों में इक युद्ध छिड़ा मेरे अंदर भी... मन के पाखी की ज़िद के आगे अब नतमस्तक हैं अम्बर भी.... इक युद्ध छिड़ा मैदानों में इक युद्ध छिड़ा मेरे अंदर भी... परिहासों से जो आक्रांतित थे चकनाचूर हुए वह कंदर भी.... @ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha

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