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चार का खेल...

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Jul 27, 2017
  • 2 min read

बचपन से सुनते आये हैं बार-बार एक बात ........ सबसे बड़े है इस दुनिया में सिर्फ "चार के ठाठ" ..... है चार दिन की चांदनी प्यारे फिर घनी अँधेरी रात ।।। घनी अंधेरी रात में निकले हम खोजने उनका साथ ।।। साथ खोजते चार कोस तक ढूंढे हम उनकी बाट ।। फिर आँखें चार हुई तो दिल में उमड़ चले जज़्बात ।।। उमड़ चले जज़्बात प्रेम का आया फिर सैलाब ।।। दिल की मरू भूमि पर लग गया एकाएक चौमास ।।। लगा ऐसा चौमास झमाझम हुई नेह बरसात ।। लुकते-छिपते सबसे बचके करते थे मेल - मिलाप ।। मेल-मिलाप में रोज़ाना होती कसमों-वादों की बात ।। उड़ती रहती इस प्रीत की चार दिशाओं में परवाज़ ।। उड़ी ऐसे परवाज़ की चौराहे पर खड़े तकते आकाश ।। हर दुआ में मांगते हम चार घड़ी का उनका साथ ।।। सोचा साथ चार कदम चल बदलेंगे अपने हालात ।।। बदले न हालात न बदली दुनिया के ही खयालात ।। बदले नहीं खयालात तो फिर मन से आयी आवाज़ ।। प्रेम में पड़ घर त्याग के सोचा पाएं उनका साथ ।।। चार दिनों तक दिल को हिम्मत हमने खूब बंधायी आप ।। मन की चौरंगी सेना भी धीरे से करती थी परिहास।।।। परिहासों के चक्रव्यूह से निकलने का फिर किया प्रयास ।।। वीर रस में डूबा रटाया मन को प्रेम का आखर पाठ ।।।। पाठ पढ़ चारों पहर बीतेे पर चौखट लाँघ न पाते ख़ाक ।। हर क़दम थमता डरकर जो सोचते चार लोग क्या कहेंगे बात ।।। क्या कहेंगे बात ये थी एक विकट समस्या वाली बात ।। तो दरवाज़े की कुंडी लगा कैद हुए चार दीवारी साथ ।।। चार दीवारी जैसे की चार युगों का बन गया श्राप ।। सोचा कैसे करें अब हम इस भूल का पश्चाताप ।।। भूल सुधारने निकले चार धाम व माँगा कुछ पुण्य प्रताप।। यूँ चार के फेर में उलझे, चारों खाने चित्त हुए ज़नाब ।।। यूँ चित्त हुए ज़नाब के फिर हम उठ न पाये आप ।। लगता है चार कांधों पे ही निकलेगी अपनी भी बारात ।। ......... बड़े बुजुर्गों को था पहले से ही ये आभास ।।। …........ चार के फेर में उलझी रहेगी सारी मानव जात ।।। ~~ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ 


 
 
 

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