निंदिया एक रूप अनेक😴
- Smriti Tiwari
- Jul 30, 2017
- 2 min read
गंगा मईया के घाट किनारे स्वर्णिम नील गगन की छांव में.... अपने दोनों पैर पसारे सुस्ताते निंदिया की ठांव में.... मिलता है विश्राम यहां ताने-बाने से निर्वाण यहां .... निद्रा का हो रूप कोई भी सुखद लगते सारे इस गांव में ...... ज्ञानी मनुष्य कह गए हैं कि संतोष और ख़ुशी कभी खरीदी नहीं जा सकती, सिर्फ महसूस की जा सकती है और सुकून की नींद हर एक के किस्मत पर दस्तक नहीं देती।। शायद इसी लिए कभी-कभी पथरीली ज़मीन आलीशान महलों के मख़मली बिस्तर से ज़्यादा सुख देती है,संतुष्टि देती है।। यह अद्भुत नहीं तो भला क्या है कि सुबह-औ-साँझ यंत्रवत चलने वाला हमारा हाड़-मांस का शरीर जैसे ही थकावट महसूस करता है, तो मीठी नींद की कल्पना स्वतः ही मन में हिलोरें मारने लगती है और निंदिया के आगोश में जाने के बाद शरीर तो निष्क्रिय रहता है किंतु चंचल अवचेतन सुदूर दौड़ता हुआ सतरंगी ख़्वाब समेटने में लग जाता है।।। निंदिया से मुलाकात न हो तो भी तनाव और अधिक हो तो भी फिर भी सुकून की नींद की चाहत अवश्य रखते हैं और चिरनिद्रा की कामना तो हम करते ही नहीं।। किन्तु क्या हर कामना पूर्ण होती है??? नहीं न। इसलिए इस नश्वर जगत की हर वस्तु की भांति यह तन भी नश्वर है और इस चिरनिद्रा का लौकिक-अलौकिक मिलन होता है क्या कभी??? अवश्य!!! चलिये कभी चलते हैं गंगा मईया के घाटों पर तफ़री करते हुए,सुकून निद्रा में मग्न चेहरों को पढ़ते-बढ़ते हुए 'मणिकर्णिका घाट' की ओर।।। क्योंकि यहां चिरनिद्रा का अर्थ "मृत्यु" नहीं "मोक्ष" है। लौकिकता-अलौकिकता से परे आत्मा के परमात्मा से मिलने का अद्भुत क्षण, जहां सदा-सदा के लिए सुकून भरी नींद मिलती है माँ गंगा के आंचल की छाँव में , स्वर्णिम गगन की छाँव में !!!!
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