बस यही अरमान है।
- Smriti Tiwari
- Jul 30, 2017
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ये तुम्हारी कल्पना और बुद्धि का अंजाम है, रास्ते हैं दो मगर वो एक ही पैगाम है जब नहीं तुम जानते थे क्या ज़मीन क्या आसमान, बंदगी जब थी नहीं क्यूं काफिरी बदनाम है आये थे जब वो तो आयी थी तुम्हारी इक किताब, उससे पहले भी जहां में आदमी श्रीमान है उंगलियां अब मत उठाओ वक़्त का बदला मिज़ाज़, था कभी एओ वक़्त जब ज़िंदा चुना दीवार है कर दिया उसने कलम सिर बढ़ सकी न उसकी शान, आज भी वो हम सभी के सीने में आबाद है मेरी नज़रों में सभी पैग़म्बरों की इक क़िताब, मैंने देखी है ये गीता और वो कुरान है आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए, इससे बढ़के बंदगी का न कोई फरमान है हम रहे या तुम रो न कोई शिकवा न गिला, फ़लसफ़ा इक हो ज़मीरी बस यही अरमान है। ~~ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/

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