विडंबना..
- Smriti Tiwari
- Jul 30, 2017
- 1 min read
सुर्ख़ियों का मोह है शायद जो ज़मीर सबने भुला दिया बिन सोचे सिर्फ स्वार्थवश ही सब खाक में उसने मिला दिया ।।।। है दशा क्या और दिशा क्या कैसे कोई इसका भान करे जनता के प्रश्नों को फिर से खास मानुष ने दबा दिया।।। सब खाक में उसने मिला दिया ।।।। सब हलाकान और लहुलुहान धू-धू कर जलते कितने प्राण सियासत के इतिहासों ने फिर मासूमों को वेदी में चढ़ा दिया।।।। सब खाक में उसने मिला दिया ।।।। चेहरे पर नया चेहरा मढ़ते हैं वाणी से नित चालें चलते हैं तन के रंजीत दागों को फिर से उजली खाकी में छिपा लिया।।। सब खाक में उसने मिला दिया ।।।। ~~ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/

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