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सारांश...

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Jul 30, 2017
  • 1 min read

थी रजनी घनी तम गहन व्यापत मन मौन था उम्मीदें समाप्त विहंगम पथ था दूर तलक था क्षुब्ध जैसे सारा आकाश। पथिक था राह भटकने को दुर्गम वन में ही सिमटने को तभी ईश दृष्टि हुई उसपर चमका शीतल इंदु प्रकाश। वह रुका दो पल करता विचार क्यूँ किया नहीं उसने प्रतिकार विचाराग्नि में धधक उठी स्मृतियां सभी ही अनायास। जो हुआ वो अब अपरिवर्तित है आगे भविष्य भी अकल्पित है फिर आत्मसंयम साहस से किया जीवन की नव आकृति का दृढ़विश्वास। इस ईहा के साथ ही राह मिली कच्ची पगडंडिया साथी बनी नई भोर हुई ले संग उम्मीदें नई नव रश्मि संग आया विश्वाश । मन सहर्ष बंधन से मुक्त हुआ हर परिभाषा से तृप्त हुआ पराजय से नहीं अब भयाक्रांत न ही रहा विजय का मोहपाश। फिर नवी स्वांश संचारित है स्फूर्ति से पथिक आह्लादित है मंजिल है उसकी वहीं कहीं जहाँ निर्मुक्त करे पथिक सुहास !!! ~~ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ 


 
 
 

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