नज़्म...✍✍
- Smriti Tiwari
- Aug 10, 2017
- 1 min read
तपिश ऐसी थी रात आये उन अधूरे ख़्वाबों में , कि आसमां पे जलता माहताब भी पिघल गया । दहक ऐसी दबी थी सोये से गुबारों में , गहरी अंधेरी रात का काजल भी उतर गया । मैं दो कदम थम के जो आगे बढ़ रहा हूं , ख़ुदाया उनकी रुख़ से वो नक़ाब भी फ़िसल गया । स्याह रातों के तसव्वुर में जो वादे थे किये उनकी , ख़िलाफ़त कर दी जैसे ही आफ़ताब भी निकल गया । ● Śमृति @ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/

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