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ग़ज़ल✍

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Aug 16, 2017
  • 1 min read

क़लम हो रही उदास चलिये ग़ज़ल कह देता हूं कई रोज़ हुये देखे तुमको ही नज़र कह देता हूं..... स्याह शब वो सारी तन्हा तिल-तिल कटी हैं तेरी दस्तक को फिर शबनमी सहर कह देता हूं.. ज़ुल्फों की काली घटाएं इस क़दर उमड़ती हैं रिमझिम फुहार की फ़िर एक पहर कह देता हूं.. रुख़सार इस कदर खिलते हैं तेरे मुस्काने से चलो इसलिए मैं तुमको गुलमोहर कह देता हूं.. नवाज़ा है ख़ुदा ने बेइंतहा हुस्न तुझे इस क़दर तुम्हें नक्काशी मूरत-ए-संगमरमर कह देता हूं.. मिले आवाज़ आपकी हमसे बस यही हसरत है तमन्नाएं दिल की सभी तुमसे बेफ़िक्र कह देता हूं.. क़लम हो रही उदास चलिये ग़ज़ल कह देता हूं कई रोज़ हुये देखे तुमको ही नज़र कह देता हूं..... ● Śमृति @ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ 


 
 
 

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