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ग़ज़ल✍✍

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Aug 19, 2017
  • 1 min read

तेरी नज़रों में मेरे अक्स की ठहर अभी बाकी है सीने में दबी तेरे साथ की कसक अभी बाकी है सरसराती हवा ने बिसरी यादों से आकर कहा पन्नों में दबे गुलाब में थोड़ी महक अभी बाकी है ये बुझता सा सूरज चाँद-तारों को बतला के गया घरौंदों में लौटते पंछियों की चहक अभी बाकी है ये ज़ुनून सा है रगों में छिपाने से छिपता नहीं नफ़रत की आँधियों में इश्क़ की दहक अभी बाकी है सुन-ए-साकी जाम का एक घूंट और पिला दे होश खो के लड़खायें हम वो बहक अभी बाकी है तेरी नज़रों में मेरे अक्स की ठहर अभी बाकी है सीने में दबी तेरे साथ की कसक अभी बाकी है ◆◆◆◆ ● Śमृति @ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ छायाचित्र आभार🤗 - !nterne+ 


 
 
 

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