बतियाँ....
- Smriti Tiwari
- Aug 28, 2017
- 1 min read
कासे कहूँ मन की बतियाँ , उन्नींदी सी रतियाँ जागी काहे हैं ।।।।।।। अलसाये से सपने,थके कदमों से नैनों की पगडंडी पर आये काहे हैं ।।।।।। याद हैं आती , बचपन की सखियाँ सावन के झूले , अम्मा की बतियाँ ।।।। यूँ ही बावरे मन का पाखी यादों को चुनकर घरौंदे बनाये काहे हैं ।।।।।।। रेत के जैसे , समय है फिसला जानूँ न कैसे , सब कुछ बिसरा ।।।। नई डगर पे सबर से हम अज़नबी चेहरों में खुद को तलाशे काहे हैं ।।।। ◆◆◆◆◆◆ ● Śमृति @ मुक्त ईहा © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ छायाचित्र आभार🤗 - !nterne+

コメント