नज़्म✍
- Smriti Tiwari
- Sep 3, 2017
- 1 min read
वक़्त ऐसा चला ज़ख़्म बढ़ते गये मैंने रोकर पुकारा तुम हँसते रहे । तुमने सोचा कि क़ैदी भागेगा नहीं हम भी दीवाने थे तेरी चाहत लिये । पर कहां तक उम्मीदों का दम भर सकूं रौशनी बुझ गई आशियाँ लुट गया । अब ना नाम पुकारेंगे आके इधर मैं चला छोड़ कर सब ये शानो-शहर । अब हवाले तुम्हारी कहानी रही जिस तरह चाहो अपने को रखो यहां । मैं ना आऊँगा कहने तुम्हें हमसफ़र मेरा सब लुट गया और रहा बेख़बर । •••••••✍✍✍ ● Śमृति @ मुक्त ईहा••••••• © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ छायाचित्र आभार🤗 - !nterne+

Comments