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नज़्म✍...

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Sep 3, 2017
  • 1 min read

तेरे हिज़्र की खींची लकीरें हैं ये जिन्हें मैं हरफों में ढाल रही हूं । मोहब्बत का ख़ुमार नहीं था उतरा ज़ार-ज़ार हुए ख़त सम्हाल रही हूं । तरकश के तीर से कल जो था घायल उस ज़ख्मी परिदें को आज पाल रही हूं । तूने हर मुलाक़ात में मेरा जवाब मांगा था मैं ख़ुद के ही लिये ही एक सवाल रही हूं । अब कहीं जाकर आंखों से पर्दा हटा है वरना बरसों तेरे ख़्वाब में निढाल रही हूं । ◆◆◆◆◆ हिज़्र - विरह •••••••✍✍✍ ● Śमृति @ मुक्त ईहा••••••• © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ छायाचित्र आभार🤗 - !nterne+  


 
 
 

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