दर्पण🎴
- Smriti Tiwari
- Sep 17, 2017
- 1 min read
दर्पण !! सुन तो सही तुझपर मन के अक्स की सच्चाई दिखती नहीं कहीं । लोगों के चेहरे पर दूजे ही चेहरे मढ़े हैं न जाने कितने ही परतों से रुख़ ढ़के हैं । दर्पण ! कह तो सही असली रंगत सूरत की क्यों भला दिखती नहीं कहीं । वो सजना सँवरना बेवजह अब आता नहीं ख़ुद को तेरी नज़र से देख शर्माना आता नहीं । दर्पण ! देख तो सही बिंदी, कुमकुम का प्रेम रंग थोड़ा फ़ीका लगता तो नहीं कहीं । मुझको अब अपने से नहीं ग़ैर बेगाने लगते हो यौवन काया ढ़ली तो तुम नज़र चुराने लगते हो । दर्पण ! तुझे बिसरा तो नहीं वो मादक सौंदर्य की दैहिक मूर्त रचना मेरी अतीत में खो गई कहीं । •••✍✍✍ ● Śमृति @ मुक्त ईहा••••••• © https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Like @ https://www.facebook.com/me.smriti.tiwari/ Follow@ https://www.instagram.com/mukht_iiha/ छायाचित्र आभार🤗 - !nterne+

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