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Mirrors☯

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Sep 29, 2017
  • 2 min read

न मुझमें कुछ मुझसा है न तुझमें कुछ तुझसा । नज़र का ख़ेल बदल कर देख़ मैं हद तक तुझसा हूँ बेहद तू मुझसा। •••••••••••••••••• ये तस्वीर बिन बोले बहुत कुछ कह जा रही है । सत्य ही तो है, बाह्य आवरण और आंतरिक सच्चाई क्या है यह किसको पता??? 🔄🔄🔄🔄 कुछ अवधारणाएं ऐसी होती हैं जिनपर विचार करने पर लगता है कि आख़िर वह कौन सी मानसिक स्थिति रही होगी जिसने 'अहम् सर्वोपरि अस्मि' की भावना को आधार बनाकर नस्लवाद/नृजातिवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया होगा ? यह विश्वास कि हर नस्ल के लोगों में कुछ खास खूबियां होती हैं, जो उसे दूसरी नस्लों से कमतर या बेहतर बनाती हैं , इस प्रकार परिभाषित हुआ कि उसने जैविक अंतर की सामाजिक धारणाओं में आधारित भेदभाव और पूर्वाग्रह दोनों को बढ़ावा दिया । संयुक्त राष्ट्र के सभागम के मुताबिक, नस्लीय भेदभाव के आधार पर श्रेष्ठता, वैज्ञानिक दृष्टि से गलत, नैतिक रूप से निन्दनीय, सामाजिक अन्याय और खतरनाक है । यह सैद्धांतिक और व्यवहारिक रूप से औचित्यहीन है ।किंतु, प्रश्न यथावत है कि यह सोच आई कहाँ से ? मिथकों के अनुसार ईश्वर ने दो जाति बनायीं- "नर" और "नारी" जिन्हें वैदिक समाज तक समान कर्तव्य, समान अधिकार, समान ओहदा प्रदान किया और फिर प्रतिपादित हुआ "धर्मसूत्र".... जहां सर्वप्रथम मानव जाति की एक नस्ल "नर" ने स्वयं को "नारी" से उत्तम बताते हुये अंकुश शब्द की अवधारणा को जन्म दिया और नस्लीय / जातीय अंतर की सूक्ति का प्रतिपादन हुआ । यही सूक्ति आगे चलकर इतिहास में अटलांटिक दास व्यापार के पीछे एक प्रेरणा शक्ति बनी।अमेरिका में सदी पूर्व का नस्लीय अलगाव और दक्षिण अफ्रीका के अंतर्गत रंगभेद भी इसी सिद्धांत के पोषक थे। यह सिद्धांत नरसंहार के राजनीतिक और वैचारिक आधार का एक प्रमुख हिस्सा रहा है जैसे यहूदी नरसंहार, पर औपनिवेशिक संदर्भों में भी जैसे दक्षिण अमेरिका और कांगो में रबर बूम के रूप में, अमेरिका के उपर यूरोपीय विजय में और अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के औपनिवेशीकरण में और आज भी गाहे-बगाहे नस्लीय भेदभाव के दुष्परिणाम देखने में आते रहते हैं । कहा जा सकता है कि यह एक प्रकार की मानसिक विकलांगता है । नस्लीय पक्षपात सदैव ही एक दीमक की भांति सौहाद्र का विनाश करता रहा है और वक़्त के साथ यह प्रखर ही हो रहा है। अतः निर्णय मानव जाति को ही लेना होगा कि उनके लिए मानवता सर्वोपरि है अथवा नृजातिवाद । ••••••••••••••••••••••••••••••••••••• ••✍✍✍ © Śमृति #Mukht_iiha Webpage🏷: https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Facebook👍 : S'मृति "मुक्त ईहा" Instagram❤ : mukht_iiha छायाचित्र आभार🤗 : !nterne+ 


 
 
 

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