बयां-ए-गज़ल✍
- Smriti Tiwari
- Sep 29, 2017
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लफ्ज़ों से अपने हालात बयां करती हूं जो दिल में दबी थी वो बात बयां करती हूं । सोचा था उम्र भर न करूंगी कोई इज़हार कर वादा-खिलाफ़ी ज़ज़्बात बयां करती हूं । ये जो आड़ी-टेढ़ी सी बातें बोलती रहती हूं इनसे मैं ख़्वाब-ओ-ख़्यालात बयां करती हूं । रिहा चश्म से अपनी दुनिया तौल रही हूं क़ैदी कल्ब से फ़िर वो अंदाज़ बयां करती हूं । ग़मज़दा हो नूर-ऐ-चश्म गिराने का दौर पुराना है मुस्कुराहट से दर्द-ऐ-दिल के अहसास बयां करती हूं । लफ्ज़ों से अपने हालात बयां करती हूं जो दिल में दबी थी वो बात बयां करती हूं । ••✍✍✍ © Śमृति @ मुक्त ईहा••• Webpage🏷: https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Facebook👍 : S'मृति "मुक्त ईहा" Instagram❤ : mukht_iiha छायाचित्र आभार🤗 : !nterne+

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