बशर-ए-ग़ज़ल✍
- Smriti Tiwari
- Sep 30, 2017
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सब कुछ तो है पर मैं खुशी नहीं ढूंढ सका साँसों में अपनी ही ज़िंदगी नहीं ढूंढ सका । कल भी रंग-ऐ-महफ़िल में लाख भीड़ जमा थी उन बशरों में एक अदद इंसान नहीं ढूंढ सका । तेरी आँखों में मुंबइस सवाल अब तलक याद हैं ठहरा हूँ वहीं पर वाज़िब ज़वाब नहीं ढूंढ सका । ग़ैर थे जो खैरख़्वाह मुझे आगाह करते ही रहे मैं अपनों की ही लगायी हौंस नहीं ढूंढ सका । शिक़वे शिक़ायतों के दिन गुज़र गये अब तो आब-ए-आईने में अपना अक्स नहीं ढूंढ सका । •••••••••••••• मुंबइस -उठनेवाला हौंस- बुरी नज़र आब-ए-आईना- दर्पण की चमक •••••••••••••• ••✍✍✍ © Śमृति #Mukht_iiha Webpage🏷: https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Facebook👍 : S'मृति "मुक्त ईहा" Instagram❤ : mukht_iiha छायाचित्र आभार🤗 : !nterne+

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