मैं कालगर्भ से ही गुमनाम हूँ!!
- Smriti Tiwari
- Sep 29, 2017
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स्वयं सिद्धा स्वयं कर्ता रखती मैं स्व-पहचान हूँ । बेड़ियों सी मर्यादा का भी करती एक हद सम्मान हूँ । धुरी हूँ मैं एक परिवार की समाज की,अख़िल संसार की । किंतु, हे सखी! देख़ो ये मेरी मौन स्वीकार्य भावना यहाँ खोखले पुरुषत्व ढांचे में फंसी सी मैं कालगर्भ से ही गुमनाम हूँ!! सजल धवल चारु चपल पवित्रता का मूल हूँ । वाणी मृदु निश्छल मन रमणीय भावों का मेल हूँ । प्रेरणा हूं मैं एक कलाकार की अभिव्यक्ति की नव विचार की । किंतु, हे सखी! देख़ो ये मेरी प्रीत की कामना यहाँ अपनों के मोह पंक में धंसी सी मैं कालगर्भ से ही गुमनाम हूँ!! प्रेयसी, भार्या के परिचित असीम प्रेमभाव में छिपी हूँ । जननी, तनुजा, बांधनी के हर प्रार्थभाव में मिली हूँ । आधारशिला हूँ हर व्यवहार की मूर्त-अमूर्त सहज़ स्वीकार्य की । किंतु हे सखी! देखो ये मेरी भाग्य की रचना यहाँ विधाता की अनूठी रची सी मैं कालगर्भ से ही गुमनाम हूँ!! ••✍✍✍ © Śमृति #Mukht_iiha Webpage🏷: https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Facebook👍 : S'मृति "मुक्त ईहा" Instagram❤ : mukht_iiha छायाचित्र आभार🤗 : !nterne+

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