मैं बस मामूली शायरा ✍...
- Smriti Tiwari
- Sep 29, 2017
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मेरी सोच मेरे अपनों में है सिमटी मेरा मस्कन बना मेरा दायरा हाल-ऐ-दिल बयान कर देती हूँ मैं बस मामूली शायरा । मेरी दोपहरी वही फरागत वाली बंद नज़्मों को करती ज़ाहिरा । सौ सुन अपनी एक कह देती हूँ मैं बस मामूली शायरा । ज़िस्म तो है उल्फ़तों का मारा रूह बन उठी अब कायरा । रुसवाईयाँ मुस्कुरा के हटा देती हूँ मैं बस मामूली शायरा । अज़नबी चेहरों पर हंसी उगाना ही लगता है हमको मायरा । अधपके ख़्वाबों को हवा देती हूँ मैं बस मामूली शायरा । मस्ज़िद-मंदिर के फेरे नहीं किसी बच्चे से करके सायरा । झुक कर आदाब कह देती हूँ मैं बस मामूली शायरा । •••••••••••••• शायरा- शायरी कहने वाली मस्कन-मकान कायरा-शांतिप्रिय/अद्वितीय मायरा-अनुकूल/सराहनीय ज़ाहिरा- चमकदार/तेज सायरा-हंसमुख/मैत्रीय •••••••••••• ••✍✍✍ © Śमृति #Mukht_iiha Webpage🏷: https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Facebook👍 : S'मृति "मुक्त ईहा" Instagram❤ : mukht_iiha छायाचित्र आभार🤗 : !nterne+

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