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⚔ Viruddh ⚔

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Oct 8, 2017
  • 1 min read

⚔•••••••••••⚔ "विरुद्ध" होने का भाव भी अनोखा है! क्योंकि यह अनुभव कराता है हमें हमारे वास्तविक आयाम का। कभी न कभी , कहीं न कहीं , कोई न कोई हमारे विरुद्ध अवश्य ही होगा । ✍⚔ कभी समय विरुद्ध, कभी प्रेम विरुद्ध, कभी अपने विरुद्ध, कभी सपने विरुद्ध । सिर्फ़ हमारा अंतर्मन ही हमारे साथ सदैव रहता है। और यह हम पर निर्भर है कि हम उसे अपना सर्वस्व बनाएं या हार मानकर उसे भी अपने विरुद्ध कर लें।✍⚔ •••••••••••• एक कवि की कल्पना के अनुसार- "अंतर्मन से बड़ा हूँ मैं, क्योंकि अंतर्मन से खड़ा हूँ मैं" । •••••••••••• इसी भाव को पिरोया है इन शब्दों में, इस आशा के साथ कि चाहे जो भी हो अंतर्मन और स्व कभी भी एक दूसरे के विरुद्ध नहीं होंगे । 🙏🙏✍✍🙏🙏 जीवन पथ पर विस्तारित नभ पर विचरण कर मैं हुआ प्रबुद्ध ! आप ही अपने साथ खड़ा मैं जब जगत ये सारा हुआ विरुद्ध ! काली आँखों के स्वप्न वो जगमग तत्पर होने लगे समुच्च ! आप ही अपनी प्रेरणा बना मैं जब समय वो सारा हुआ विरुद्ध ! रोष हुआ जब थामे हाथ छुड़ाते नाते होने लगे विलुप्त ! आप ही अपना बना सखा मैं जब संगी वो सारे हुए विरुद्ध ! तीव्र परिवर्तन मद्धम निस्पंदन काल चक्र का हुआ प्रभुत्व ! आप ही अपना पुंज बना मैं जब साँसों की लय हुई विरुद्ध ! •••✍✍✍ © Śमृति #Mukht_iiha Webpage🏷: https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Facebook👍 : S'मृति "मुक्त ईहा" Instagram❤ : mukht_iiha 


 
 
 

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