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Kaam nahi!✍

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Oct 31, 2017
  • 1 min read

जो कदम तेज़ रफ़्तार में न भाग सके आज़कल दुनिया में उसका काम नहीं। चाटुकार की सरकार बड़े जोश में है यारों वो सिर हुए कलम जो करते थे सलाम नहीं। उंगलियों की नोक पर रिश्ते यहाँ लटकते हैं अहसास समेटते मिलते कोई यहाँ पैग़ाम नहीं। कौम की दीवारों में देख़ शहर सारा बंट गया आदमी की है भीड़ पर मिलते यहाँ इंसान नहीं। अपनों के पास घड़ी भर को तो ठहर जा तू ज़िंदगी सिर्फ़ चलने फिरने का है नाम नहीं। ••✍✍✍ © Śमृति #Mukht_iiha Webpage🏷: https://smileplz57.wixsite.com/muktiiha Facebook👍 : S'मृति "मुक्त ईहा" Instagram❤ : mukht_iiha 


 
 
 

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