top of page

मेरे आखर तेरी सोच से लिपट गए✍✍

  • Writer: Smriti Tiwari
    Smriti Tiwari
  • Jun 30, 2017
  • 1 min read

यूं खिरद में आकार सिमट गए मेरे आखर तेरी सोच से लिपट गए , कहलाया वो भी काव्य सृजन कोरे कागज़ पर जो बिखर गए ।।।।।।

आहिस्ता से मुझको भान हुआ कितने ही मौसम गुज़र गए , वो रंग पलाशों के बिसरे सांवली शामों वाले बज़्म गए ।।।।।।

इक वक्त था जब कौड़ी कंकड़ की खनक में भी माधुर्य सा था , इक वक्त आज है जबकि हम मोहरों के जाल में उलझ गए ।।।।।।

धुंधला छाया अरु दिवस गए दुनियादारी में हम बदल गए , देखा उस रज को परे हटा अनंतर तेरे रंग में संवर गए ।।।।।

हर हरफ़ से निकले भाव वही फिर कई मिसरे गुमनाम हुए , कहलाया वो भी काव्य सृजन कोरे कागज़ पर जो बिखर गए ।।।।।

यूं खिरद में आकार सिमट गए मेरे आखर तेरी सोच से लिपट गए , कहलाया वो भी काव्य सृजन कोरे कागज़ पर जो बिखर गए ।।।।।।

●●●●●●●" #मुक्त #ईहा "

1. खिरद - दिमाग 2. बज़्म - सभा/गोष्ठी 3. मिसरे - कविता में आधारभूत पहला चरण

 
 
 

Comments


Featured Review
Tag Cloud
bottom of page